• किसी पदार्थ में इलेक्ट्रॉन या आवेश का एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रवाह, धारा कहलाता है।
• इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह की गति पदार्थ के प्रकार पर निर्भर करती है।
• इलेक्ट्रॉन में दो प्रकार की गतियाँ होती हैं- चक्रण गति तथा कक्षीय गति।
इलेक्ट्रॉन पर -16x10-19 कूलॉम तथा प्रोटॉन पर +1.6x10-19 कूलॉम आवेश होता है, जबकि न्यूट्रॉन आवेश रहित होता है।
• विद्युत धारा की चाल प्रकाश की चाल के तुल्य अर्थात् 3x10 मी/से होती है तथा इसका प्रवाह धन दिशा से ऋण दिशा की ओर अर्थात् इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के विपरीत होता है।
• वह विद्युत धारा, जिसके मान और दिशा की एक नियत समय अन्तराल पर पुनरावृत्ति होती है, वह धारा, प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है।
• जिस विद्युत धारा का मान तथा दिशा समय के सापेक्ष नियत रहती है, वह धारा, दिष्ट धारा कहलाती है।
• इलेक्ट्रिक प्रैस, इलेक्ट्रिक आयरन, हीटर, बल्ब आदि विद्युत के ऊष्मीय प्रभाव पर आधारित होते हैं।
• विद्युत के गैस आयनीकरण प्रभाव का उपयोग उच्च प्रकाश तीव्रता वाले बल्बों में किया जाता है।
• "जब धारा किसी चालक से प्रवाहित होती है, तो वह लाल तप्त हो जाता है।" यह विद्युत के तापीय प्रभाव के कारण होता है।
• जब विद्युत धारा पृथ्वी की ओर प्रवाहित होती है, तो वस्तु का विभव धनात्मक तथा जब धारा पृथ्वी से वस्तु की ओर प्रवाहित होती है, तो वस्तु का विभव ऋणात्मक होता है।
• किसी चालक के सिरों के मध्य विभवान्तर का मापन वोल्टमीटर द्वारा किया जाता है।
• किसी परिपथ में चालक में व्यय होने वाली वोल्टेज को वोल्टेज ड्रॉप कहते हैं।
• वैद्युतिक कार्य = emf x धारा x समय के तुल्य होता है।
• मीट्रिक प्रणाली में 1HP = 735.5 वाट तथा ब्रिटिश प्रणाली में1HP=746 वाट होता है।
• चाँदी, ताँबा, सोना इत्यादि पदार्थों में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की बहुलता होती है, जो चालकों का एक विशेष गुण है।
• चालक पदार्थों में तन्यता, सुदृढ़ता, आघातवर्ध्यनीयता का गुण विद्यमान होना चाहिए।
• चालकों में उपस्थित तन्यता के गुण के कारण ही उनके महीन तार बनाए जा सकते हैं, जो चोक, आर्मेचर आदि वाइण्डिग कार्यों में प्रयोग किए जाते हैं।
•गैस की चालकता को बढ़ाने के लिए उसमें लवण मिश्रित किए जाते हैं, जिससे गैस आयनीकृत होकर गैसीय चालक की भाँति व्यवहार करने लगती है।
• रिले, कॉण्टैक्टर्स, स्टाटर्स आदि के संयोजक बिन्दु बनाने के लिए प्रयुक्त चाँदी की चालकता 98% तथा 20°C पर विशिष्ट प्रतिरोध .1.64 माइक्रो ओम सेमी होता है।
•बस बार, वैद्युतिक तार, केबिल, अर्थिंग वैद्युतिक सहायक सामग्री इत्यादि के निर्माण में ताँबे का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि इसकी चालकता 90% होती है।
•टंगस्टन का गलनांक 3400°C होने के कारण इसका प्रयोग विद्युत बल्बएवं फ्लोरोसेन्ट ट्यूब के फिलामेंट बनाने के लिए किया जाता है।
• पीतल, ताँबे और जस्ते से निर्मित चालक पदार्थ है, जिसकी चालकता चाँदी की तुलना में 48% होती है।
•लोहे का विशिष्ट प्रतिरोध ताँबे के विशिष्ट प्रतिरोध की तुलना में लगभग 8 गुना होता है।
• उच्च गुणवत्ता वाले उपकरणों में पीतल के स्थान पर प्रयोग की जानेवाली मिश्र धातु जर्मन सिल्वर में 60% ताँबा, 15% निकिल तथा 25% जिंक होता है।
•भूमिगत केबिल्स पर नमीरोधी एवं जंगरोधी सुरक्षा आवरण चढ़ाने एवं सीसा संचायक सैलों की प्लेटें बनाने के लिए लैड का प्रयोग किया जाता है।
•प्रतिरोधक बनाने के लिए उपयुक्त मैंगनिन के रासायनिक संघटन में 84% ताँबा, 12% मैंगनीज तथा 4% निकिल होता है।
•उच्च विशिष्ट प्रतिरोध वाली मिश्र धातु, यूरेका में 40% निकिल तथा 60% कार्बन होता है।
•पारा, सामान्य तापक्रम पर द्रव अवस्था में रहने वाला धात्विक पदार्थ अथवा चालक पदार्थ है।
•विद्युत प्रैस, केतली, टोस्टर आदि के हिटिंग एलीमेंट नाइक्रोम के बने होते हैं, जिनमें 80% निकिल तथा 20% क्रोमियम होता है।
•अचालक पदार्थों में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या नगण्य होती है; जैसे अभ्रक, काँच, एस्बेस्टस इत्यादि।
• किसी अचालक पदार्थ की डाइ-इलेक्ट्रिक स्ट्रैन्थ उसकी वोल्टेज सहन सीमा होती है, जो किलोवोल्ट्स प्रति मिलीमीटर में व्यक्त की जाती है।
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