Occupational Safety and Health

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* विद्युत चालित उपकरणों: जैसे-मोटर, जेनरेटर, आल्टरनेटर, कन्वर्टर आदि का निर्माण, अनुरक्षण और मरम्मत का कार्य करने वाला कारीगर विद्युत्कार (Electrician) कहलाता है।

* दुर्घटना एक अनियोजित एवं अनियंत्रित घटना है, जिससे किसी वस्तु, पदार्थ या व्यक्ति की क्रिया या प्रतिक्रिया के कारण व्यक्तिगत चोट लगने की सम्भावना बनी रहती है।

* वैद्युतिक दुर्घटना से अभिप्राय किसी व्यक्ति को विद्युत झटका लगने से है।

* सामान्यतः 90वोल्ट (V) से अधिक वोल्टेज पर हमारे शरीर के आर-पार विद्युत धारा प्रवाह स्थापित हो जाता है, जिस कारण हमें विद्युत झटके का आभास होता है।

* विद्युत झटका लगने से शरीर पर छाले पड़ना, किसी अंग का मांस जलना, श्वास में रुकावट उत्पन्न होना आदि क्षतियाँ हो सकती हैं।

* यदि कोई व्यक्ति किसी कारणवश विद्युत के सम्पर्क में आ गया हो, तो उसे छुड़ाने से पूर्व सर्वप्रथम विद्युत लाइन के मेन स्विच को ऑफ कर देना चाहिए।

* किसी भी स्थान पर अथवा कार्यशाला में दुर्घटना से बचने के लिए  विभिन्‍न सुरक्षा संकेत उपलब्ध होते हैं।

* स्वयं की सुरक्षा की दृष्टि से कार्यशाला में सदैव बूट पहनकर चलना चाहिए।

*कार्यशाला में चलती हुई मशीन की मरम्मत कभी नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से दुर्घटना हो सकती है।

*सभी सूक्ष्ममापी यन्त्रों को जंग आदि से बचाने हेतु समय-समय पर तेल से इसका स्नेहन करना चाहिए

*तैलीय सतह की सफाई हेतु प्रायः लकड़ी का बुरादा प्रयोग में लाया जाता है।

*फ्यूज सदैव फेज तार पर संयोजित किया जाता है।

*विद्युत्कार के जूते प्राय: रबर के बनाए जाते हैं।

*सुरक्षा संकेत चार प्रकार के होते हैं- निषेधात्मक संकेत, अनिवार्य संकेत, चेतावनी संकेत, सूचनात्मक संकेत।

*निषेधात्मक संकेतों में लाल रंग का बॉर्डर तथा लाल रंग की क्रॉस पट्टी बनी होती है तथा सफेद पृष्ठभूमि पर काली आकृति बनी होती है।

*अनिवार्य संकेतों द्वारा हैलमेट पहनने, जूते पहनने, श्वास यन्त्र (respirator) पहनने जैसे आदेशों को दर्शाया जाता है।

* चेतावनी चिन्ह, त्रिभुजाकर होते हैं और इनकी पृष्ठभूमि पीली होती है।

* कार्यशालाओं में वैद्युतिक शॉर्ट-सर्किट, ज्वलनशील पदार्थों कीउपस्थिति, विस्फोटक पदार्थों की उपस्थिति आदि के कारण आगलगने का भय रहता है।

* लकड़ी, कागज, कपड़ा, जूट आदि से लगने वाली अग्नि श्रेणी 'ए’ के अन्तर्गत आती है।

* मिट्टी के तेल, पेट्रोल, डीजल आदि से लगने वाली अग्नि को बुझाने के लिए झाग वाले तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड वाले अग्निशामक यन्त्र: प्रयोग किए जाते हैं।

* विद्युत से लगी आग को बुझाने के लिए रेत का प्रयोग किया जाता है।

* CClका पूरा नाम कार्बन टेट्राक्लोराइड है, जो कि एक अग्निशामक के रूप में प्रयोग होता है।

* सोडियम बाइकार्बोनेट की तनु गन्धक अम्ल से क्रिया कराने पर जल तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैस उत्पाद के रूप में उत्पन्न होते हैं।

* घायल व्यक्ति के अधिक खून बहने की दशा में घाव को दबाना चाहिए जससे खून का बहाव कम हो जाए।

* शरीर का प्रतिरोध अपेक्षाकृत कम होता है।

*विद्युत झटका लगे व्यक्ति को चाय, पानी, कॉफी आदि पेय पदार्थ नहीं पिलाने चाहिए।

* प्राथमिक उपचार बॉक्स में बरनॉल, डेटॉल, बीटाडीन ट्यूब आदि दवाएँ रखी जाती हैं।

*पीड़ित व्यक्ति को साँस न आने पर, विविध कृत्रिम क्रियाओं द्वारा सांस दी जाती है।

* कृत्रिम श्वास की सिलवेस्टर विधि को उस स्थिति में प्रयोग किया जाता है, जब पीड़ित के सीने की ओर छाले पड़े हों।

*PPEs वे साधन हैं, जो विविध रूपों में मानव शरीर की आवरण के रूप में रक्षा करते हैं।

*शक्ति विफलता की स्थिति में कार्यशाला का मेन स्विच तत्काल बन्दकार देना चाहिए।

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